एक गाँव में कृष्णा नाम का एक छोटा लड़का रहता था। गाँव में हर शाम अँधेरा फैल जाता, और लोग अपने-अपने घरों में दीये जलाते। कृष्णा को भी दीया बहुत पसंद था, लेकिन उसके पास नया दीया खरीदने के लिए पैसे नहीं थे।
एक दिन कृष्णा ने सोचा,
“मेरे पास पैसे नहीं हैं, लेकिन हाथ और दिमाग तो है… मैं अपना दीया खुद बनाऊँगा!”
वह जंगल गया और उसे एक सूखा नारियल का खोल मिला। घर आकर उसने मिट्टी मिलाकर उस खोल को दीये की तरह आकार दिया। उसकी माँ ने थोड़ा तेल और रूई की बाती दे दी।
रात होने पर कृष्णा ने अपना बनाया हुआ दीया जलाया। छोटी-सी लौ ने उसके कमरे को रोशन कर दिया।
कृष्णा बहुत खुश हुआ, लेकिन उसने देखा कि उसकी खिड़की से रोशनी बाहर भी जा रही है। बाहर अँधेरे में खेल रहे बच्चे उस रोशनी को देखकर मुस्कुरा रहे थे।
कृष्णा ने तुरंत दीया बाहर रख दिया।
बच्चे खुशी से बोले—
“अरे कृष्णा! तुम्हारा दीया तो हमें भी उजाला दे रहा है!”
कृष्णा हँसकर बोला—
“उजाला कभी सिर्फ अपने लिए नहीं होता… वह दूसरों का रास्ता रोशन करने के लिए होता है।”
गाँव वालों ने कृष्णा की बात सुनी और प्रेरित हुए। दूसरे बच्चे भी छोटी-छोटी चीज़ें बनाना सीखने लगे।
किसी ने मिट्टी का दीया बनाया, किसी ने पत्तों का, किसी ने खोल का…
कुछ ही दिनों में पूरा गाँव छोटे-छोटे दीयों की रोशनी से चमक उठा।
